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आज जो कहानी में बताना चाहती हूं वो श्री राम के समय की कहानी है जिसमे बताया गया है कि समय बार बार स्वयं को दोहराता है ।
कहानी उस समय की है जब श्री राम का पृथ्वी पर समय पूर्ण हो गया था और उनके वैकुंठ वापस जाने का समय आ गया था और यमराज उन्हे लेने के लिए पोहच गए थे परंतु महल में प्रवेश नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उनको श्री राम के परम भक्त और महल के मुख्य प्रहरी हनुमान जी से डर लगता था । उन्हे भय था कि यदि हनुमान को ये पता चला कि वो प्रभु श्री राम के प्राण लेने आए हैं तो हनुमान बोहोत क्रोधित हो जाएंगे और न जाने क्या कर बैठेंगे इसलिए उन्होंने श्री राम जी से ही आग्रह किया कि वे ही कोई हल निकालें । तब श्री राम ने अपनी उंगली से एक मुद्रिका निकली और उसे महल के प्रांगण में एक छिद्र था उसमे गिरा दी ।
वो छिद्र कोई मामूली छिद्र नहीं बल्कि एक सुरंग का रास्ता था जो सीधा नागलोक तक पोहचता था ।
श्री राम ने हनुमान जी को कहा कि मेरी मुद्रिका इस छिद्र में गिर गई है , ढूंढकर ले आओ। हनुमान जी ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए स्वयं का आकार अत्यंत छोटा बना लिया और उस छिद्र में प्रवेश कर गए। वहां से सुरंग से होते हुए वो नागलोक तक पहुंच गए।नागलोक पोहचकर वहां के राजा वासुकी से भेंट की और उन्हे सारा वृत्तांत सुनाया। सुनकर वासुकी हनुमान जी को एक स्थान पर ले गए जहां बोहोत सारी मुद्रिकाओं का ढेर पड़ा हुआ था । वासुकी जी ने कहा इन मुद्रिकाओ में उस मुद्रिका को ढूंढ लो ।
मुद्रिकाओँ का इतना ढेर देखकर हनुमान जी सोचने लगे कि इस ढेर में से उस एक मुद्रिका को ढूंढना अत्यंत कठिन है जैसे पत्तों के ढेर में से एक सुई को ढूंढना परंतु जैसे ही उन्होंने पहली मुद्रिका उठाई वो मुद्रिका वही मुद्रिका निकली जो श्री राम जी की थी।परंतु जब उन्होंने दूसरी मुद्रिका उठाई तो वो भी वही श्री राम जी की मुद्रिका थी। इस प्रकार वो पूरा ढेर जो पर्वत नुमा बड़ा था उसमे सभी मुद्रिका श्री राम जी की ही थीं।
ये देखकर हनुमान जी को बोहोत आश्चर्य हुआ जिसपर वासुकी जी मुस्कुराए और बोले कि जिस संसार में हम रहते हैं वो सृष्टि के निर्माण तथा विनाश से गुजरती है, इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। प्रत्येक कल्प में चार युग होते हैं , सतयुग , त्रेता युग , द्वापर युग और कलयुग ।त्रेता युग में श्री राम अयोध्या में जन्म लेते हैं, एक वानर इस मुद्रिका को ढूंढने आता है और श्री राम पृथ्वी पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं।इसलिए ये सैकड़ों हजारों कल्पों से चली आ रही मुद्रिकाओं का ढेर है ।सभी मुद्रिका वास्तविक हैं । मुद्रिका गिरती रहीं और इनका ढेर बड़ा होता रहा । भविष्य के रामों की मुद्रिका के लिए भी यहां अत्यधिक स्थान है ।
हनुमान जी जान गए कि उनका नाग लोक में प्रवेश और मुद्रिकाओं के पर्वत से साक्षात्कार कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह श्री राम का उनको समझाने का मार्ग था कि मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकता ।श्री राम मृत्यु को प्राप्त होंगे ।संसार समाप्त होगा परंतु सदा की भांति संसार पुनः बनता है और श्री राम पुनः जन्म लेंगे ।
उधर यमराज ने अयोध्या में प्रवेश किया और श्री राम से एकांत में वार्ता करने हेतु उनसे वचन लिया कि वे दोनो जब वार्ता करेंगे तब कोई उसमे विघ्न नहीं डालेगा , यदि कोई आया तो प्रभु श्री राम को उन्हे मृत्यु दण्ड देना पड़ेगा , श्री राम ने उन्हें वचन दे दिया और लक्ष्मण जी को पहरे पर लगा दिया । उसी समय दुर्वासा ऋषि श्री राम से भेंट करने अयोध्या पोहोन्च गए
ऋषि दुर्वासा ने श्री राम से भेंट करने का आग्रह किया किंतु लक्ष्मण ने उन्हें रोकने के प्रयास किए किंतु वो क्रोधित होकर जब श्री राम को श्राप देने लगे तो लक्ष्मण जी ने क्षमा मांगी और उनके आगमन की सूचना देने हेतु श्री राम के कक्ष में चले गए जिसके कारण वो श्री राम के दंड के अधिकारी हो गई । यमराज तब वहां से चले गए और श्री राम ने अपने मंत्रियों तथा गुरु वशिष्ठ से इस बारे में चर्चा की कि इस समस्या का क्या हाल निकाला जाए कि वो लक्ष्मण को मृत्यु दण्ड नहीं दे सकते । इसपर गुरु वशिष्ठ ने उन्हें एक हल बताया कि यदि किसी प्राण से भी प्रिय अपने को यदि स्वयं से पृथक कर दें तो ये भी एक प्रकार का मृत्यु दण्ड ही होता है। तो श्री राम ने लक्ष्मण जी को स्वयं तथा अयोध्या से बहिष्कृत कर दिया । तब लक्ष्मण जी ने जल समाधि लेकर पृथ्वी को छोड़ दिया और वैकुंठ वापस पोहोन्च गए ।
तत पश्चात श्री राम भी जल समाधि लेने सरयू नदी के तट पर पोहोन्च गए । उनके साथ भरत , शत्रुघ्न , हनुमान , सुग्रीव , जामवंत, सुमंत तथा सभी अयोध्या वासी भी उनके साथ सरयू नदी के तट पर पोहोन्च गए। उन सभी ने श्री राम से उनके साथ जल समाधि लेने का आग्रह किया । श्री राम ने सबकी इच्छा को स्वीकृति दे दी बस हनुमान और जामवंत जी को छोड़कर । उन्होंने हनुमान जी को कलयुग तक उनके नाम का जाप , राम नाम की महिमा संसार को बताने के लिए और कलयुग में उनके कल्कि अवतार की सहायता करने के लिए उन्हें तथा जामवंत जी को पृथ्वी पर रहना पड़ेगा ऐसी आज्ञा दी।
ऐसी आज्ञा हनुमान जी तथा जामवंत जी को देकर श्री राम जी ने सभी अयोध्या वासियों सहित जल समाधि ले ली और कहते हैं उनमें से बोहोत से तो देवता थे जो नारायण के इस अवतार की सहायता हेतु ब्रह्म देव की आज्ञा से जन्म लेकर आए थे जो उनके साथ स्वर्ग पोहन्चे और श्री राम भी अपने धाम वैकुंठ वापस चले गए जहां देवी लक्ष्मी और शेष नाग उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे । इस प्रकार हनुमान जी भी परम भक्त होते हुए भी होनी को नहीं टाल सके , यही सत्य है।
धन्यवाद, मेरा ब्लॉग अच्छा लगा तो कॉमेंट में अवश्य बताएं।
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