मां दुर्गा का चौथा स्वरूप मां कुष्मांडा है।
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नमस्कार सभी को।
मेरे पिछले ब्लॉग में मैंने मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा के विषय , भाव और संदेश की जानकारी आप सब को दी थी ।आज चौथा नवरात्र है । इस दिन मां के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा होती है। आइए उनके इस स्वरूप को हम विस्तार से जानते हैं ।
संस्कृत भाषा में कूष्मांड कुम्हड़े (कद्दू) को कहते हैं ।कद्दू या कद्दू से बना मिष्ठान जैसे पेठा इन्हे बहुत अधिक प्रिय है इसलिए भक्त इन्हे कद्दू से बने मिष्ठान चढ़ाते हैं , इस कारण से भी इन्हें कूष्मांडा नाम से जाना जाता है। अपनी मंद मुस्कुराहट और अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा नाम से जाना जाता है।
मां कूष्मांडा तेज की देवी हैं । इन्हीं के तेज और प्रकाश से दशों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। कहते हैं कि सारे ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है वो देवी कूष्मांडा हैं ।
देवी कूष्मांडा का स्वरूप मंद मंद मुस्कुराने वाला है । कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तो देवी भगवती के इसी स्वरूप ने मंद मंद मुस्कुराते हुए सृष्टि की रचना की थी इसीलिए इन्हें मां आदिशक्ति कहते हैं।
देवी कूष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में माना गया है। वहां निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल देवी के इसी स्वरूप में हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान तेज और प्रकाशीय है ।
मां के सात हाथों में कमंडल , धनुष , बाण, कमल पुष्प , अमृत पूर्ण कलश , चक्र और गदा है , वहीं आठवें हाथ में जपमाला है जिसे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली माना गया है। मां का वाहन सिंह है।
माता कूष्मांडा की उपासना से सारे रोग - शोक अर्थात सभी बीमारियां और दुख दूर हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य पापों से मुक्ति पाता है। इनकी आराधना से मनुष्य को शांति एवम् लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्त का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है अतः उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। देवी कूष्मांडा अपने भक्तों पर अति शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं। इनकी आराधना करने से आयु , यश , बल और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है।
या देवी सर्वभूतेषु
मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां का ये स्वरूप सभी माताओं जैसा है जो सभी मुस्कुराकर अपनी संतानों का भरण पोषण करती हैं , समय आने पे उनका रक्षण करती हैं , थकान , निंद्रा कुछ नहीं देखती हैं , संतान की प्रथम गुरु जो उनको सही आचरण सिखाती हैं वो माता ही होती हैं । धन्यवाद ।
माता कूष्मांडा के स्वरूप का ये विवरण , उस्के पीछे छिपा भाव का का वर्णन आपको कैसा लगा कृपया कॉमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।
जय माता दी।
Comments
Good
ReplyDeleteThanks
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