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नमस्कार सभी को।
मेरे पिछले ब्लॉग में मैंने मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप का वर्णन किया था। आज तीसरा नवरात्र है जिसमे मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
मां चंद्रघंटा पापों का नाश करती हैं और राक्षसों का वध करती हैं। मां चंद्रघंटा के हाथों में तलवार , त्रिशूल , धनुष और गदा रहता है। उनके सिर पर आधा चांद घंटे के आकार में विराजमान रहता है इसीलिए मां के तीसरे स्वरूप को मां चंद्रघंटा का नाम दिया गया है।
दस हाथों में अस्त्र शस्त्र रखे खड़ग संग बांद ।
घंटे के शब्द से हरती दुष्ट के प्राण ।
सिंह वाहिनी दुर्गा का चमके स्वर्ण शरीर ।
करती विपदा शांति हरे भक्त की पीर ।
मधुर वाणी बोलकर सबको देती ज्ञान ।
भव सागर में हूं फंसा , करो मेरा कल्याण ।
मां चंद्रघंटा की कथा इस प्रकार है कि एक समय महिषासुर नाम का असुर अपनी सेना लेकर स्वर्ग लोक पर आक्रमण करने पोहांच गया । वह अत्यंत शक्तिशाली था । उसे वरदान प्राप्त था कि केवल एक स्त्री ही उसका अंत कर सकती है और कोई नहीं जिसके अहंकार में महिषासुर त्रिलोक पर विजय प्राप्त करना चाहता था। उस वरदान के कारण महिषासुर ने देवताओं को हरा दिया और स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। स्वर्ग से निकाल जाने के पश्चात देवता त्रिदेवों से सहायता मांगने पोहंचे। महिषासुर के इस कर्म से क्रोधित होकर त्रिदेवों ने एक उपाय निकाला । उन्होंने अपनी शक्ति से एक देवी को उत्तपन्न किया ।ब्राह्म , विष्णु और महेश के मुख से एक ऊर्जा उत्पन्न हुई और एकत्र हो कर एक देवी के रूप में अवतरित हो गईं ।
मां चंद्रघंटा का ये स्वरूप हमें यह शिक्षा देता है कि कोई चाहे कितना ही शक्तिशाली, वैभवशाली , धनवान क्यों न हो , यदि पाप और दुष्कर्म करेगा तो उसे उसका दंड किसी न किसी रूप में उसे अवश्य मिलेगा चाहे वो कितना भी घमंड करे स्वयं पर की वो कितना सामर्थ्यवान है , उसका कोई कुछ नहीं बिगाड सकता , किंतु अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है ।धन्यवाद ।
मेरा मां चंद्रघंटा के इस रूप तथा भाव , उसके पीछे का उपदेश का वर्णन आपको कैसा लगा कॉमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।
जय माता दी।
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