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दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप मां शैलपुत्री है।

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 नमस्कार सभी को।

आज से नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं। इसलिए में भी सोच रही हूं कि इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों का विस्तार से वर्णन करूं तो प्रतिदिन नौ दिनों तक उनके प्रत्येक रूप का वर्णन करूंगी। 


नवरात्र स्वयं की प्रतिभा को समझने का अद्भुत महापर्व है। अश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिप्रदा से नवमी  तक यह नवरात्र मनुष्य  की आंतरिक ऊर्जाओं के भिन्न भिन्न रूपों  का प्रतिनिधित्व करती है। इनको ही नौ देवियों का  नाम दिया गया  है । शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि , महागौरी , सिद्धिदात्री ये मां दुर्गा के नौ रूपों के नाम अवश्य हैं किंतु ये धार्मिक रूप से हमें बताने का माध्यम है कि ये मनुष्य की अपनी ही ऊर्जा के नौ रूप हैं । 


मां के नौ रूपों में से प्रथम रूप माना जाता है शैलपुत्री जिसके विषय में हम विस्तार से जानेंगे । 


माता सती के स्वयं की ऊर्जा से आत्म दाह करने के पश्चात उन्होंने पर्वतराज हिमावन (हिमालय) के यहां जन्म लिया । उन्होंने प्रेम से अपनी पुत्री का नाम पार्वती रखा । पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है , शैलपुत्री अर्थात शैल (पर्वत ) की पुत्री इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। 

शैलपुत्री अपने अस्त्र त्रिशूल की भांति हमारे त्रिलक्ष्य (धर्म , अर्थ और मोक्ष ) के साथ मनुष्य के मूलाधार चक्र पर रहती हैं । मूलाधार में पूर्व जन्मों के कर्म और समस्त अच्छे बुरे अनुभव संचित रहते हैं। यह चक्र कर्म के अनुसार प्राणी का प्रारब्ध निर्धारित करता है जो तंत्र और योग साधना की चक्र व्यवस्था का प्रथम चक्र है। यही चक्र मनुष्य तथा पशुओं के मध्य रेखा  खींचता है । यह मानव के अचेतन मन (subconscious mind ) से जुड़ा है। इस चक्र का सांकेतिक प्रतीक चार दल का कमल है अर्थात मन , बुद्धि, चित्त और अहंकार घोतक हैं ।

मां के इस स्वरूप में वे नंदी बैल पर सवार दिखाई देती हैं।  शैलपुत्री समस्त वन्य जीवों की रक्षक भी हैं । शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है जो धर्म अर्थ और मोक्ष का प्रतीक है । बाएं हाथ में कमल है जो कीचड़ में रहकर उससे परे रहने की  शिक्षा  देता है। मनुष्य के शरीर में प्रभु की अपार शक्ति समाहित है और शैलपुत्री उसका बताया गया संकेत हैं ।शरीर में यह शक्ति इस चक्र के आवरण में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रही है। 

शैलपुत्री मूलाधार मस्तिष्क से होते हुए सीधे ब्रह्मांड का प्रथम संपर्क सूत्र हैं । यदि शरीर  में शैलपुत्री को जगा लिया जाए तो सम्पूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करने वाली शक्ति प्रायः प्रकट होने लगती है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति विराट ऊर्जा में समाकर महामानव बन सकता है। 

शरीर में शैलपुत्री के विकास से मन और बुद्धि का भी विकास होता है। स्वयं में आनंद ही आनंद भर जाता है। 

उनके सक्रिय न होने से मनुष्य वासनाओं में लिप्त होकर  सुस्त , स्वार्थी , थका हुआ दिखाई देता है।शैलपुत्री मनुष्य के कायाकल्प के द्वारा सशक्त और परमहंस बनाने का प्रथम सूत्र है ।स्वयं में ध्यान के द्वारा इनको देह में ढूंढना काम को संतुलित करके बाहर से चट्टान की शक्ति प्रदान करती है। मानसिक स्थिरता देती है।

मां शैलपुत्री के इस रूप के  अर्थ  , भाव , उपदेश जो इस ब्लॉग में मैंने बताया है आपको कैसा लगा कृपया कॉमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। धन्यवाद ।

जय माता दी।

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